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शुक्रवार, 14 सितंबर 2012
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गुरुवार, 13 सितंबर 2012
पढ़ते-पढ़ते: विमल चन्द्र पाण्डेय की कहानी
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पढ़ते-पढ़ते: विमल चन्द्र पाण्डेय की कहानी: आज प्रस्तुत है कवि-कथाकार विमल चन्द्र पाण्डेय की कहानी 'खून भरी मांग'. इन दिनों लमही के कहानी विशेषांक में प्रकाशित विमल की कहानी "उत्तर प्...
याद तो हैं वो पर कोई करता नहीं............
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डॉ.रांघेय राघव: भूल रहे उन्हें उन्हीं के
गांव वाले
आज कस्वा वैर में जहां डॉ. सहाब
की यादों के जीते जागते निशान हैं सुप्रसिद्ध् साहित्यकार डॉ. रांगेय राघव को
उनकी पुण्यतिथी पर श्रद्वासुमन कस्बे के गणमान्य लोगों ने अर्पित की और
सामुदायिक स्वाथ्य केंन्द्र पर फल बांटकर औपचारिकता को पुरा किया। यह मौका था 12 सितम्बर को उनकी पुण्यतिथी के
अवसर पर कस्बे के रा.उ.मा.विधालय में उनकी प्रतिमा पर माला पहनाई गई और चंद वो ही
कथन जो डॉ. सहाब के उपर हर जगह लिखे मिलते हैं उन्हीं को दोहराया गया जैसे उन्होने
कम उम्र में ही 150 ग्रन्थों का लेखन कीया आदि आदि। वैसे वैर कस्वे को जिस महान
लेखक ने पहचान दिलाई वहीं पर अब वह महान हस्थी जिन जगहों पर लेखन करती थी वो स्मारक
की बजाय अरामगाह बन गई हैं। प्रेम चंद की भांती ही डॉ. सहाब भी जनमानस के कथाकार
थे। ‘गदल’ और ’पंच
परमेश्वर’ कहानियां कालजयी रचना हैं जिनमें जनमानस की अमिट
छाप दिखती है। जिस रचनाकार की रचना के उपर बने धरावाहिक को लोग दूसरों के घरों में
जाकर देखते थे आज उन्ही की पुण्यतिथी पर केवल चंद लोग आये। उसका मुख्य कारण तो
वह तथाकतिक समिति है जो न तो उनकी याद में चलाये गये पुस्तकालय को चला रही है और
न ही वह किसी को बुलाती है बस चंद दोस्त हैं जो फोटो खिंचा जाते हैं और अगले दिन
वाही वाही लूट लेते हैं उन्हें क्या मतलब किसी से। और
उपर से बडे बडे कथाकार वो तो बस ...............;
पूझो ही मत ।
*हाल बुरा है
दोस्त अपने ही घरमें
कमरे में खांसता रहा कोई जालिम ने
पानी तक न पिलाया।*
सीधे वैर से............
मनमोहन कसाना
09672281281
ekkona.blogspot.com
अभी अभी
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दोस्तो
अभी मेल आया शैल जी का यू . एस. ए. से जो कि लेखनी की संपादक हैं
उन्होनों ने बताया कि अक्टूबर के अंक में मेरी कहानी *वार त्यौहार* आ रही है।
पढ कर अच्छा लगा।
अभी मेल आया शैल जी का यू . एस. ए. से जो कि लेखनी की संपादक हैं
उन्होनों ने बताया कि अक्टूबर के अंक में मेरी कहानी *वार त्यौहार* आ रही है।
पढ कर अच्छा लगा।
चंद शेर (मर जाती है मोहब्बत कभी कभी)
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जरा सोचले ,
तेरे भी दो हाथ है
2. हो गई हें धन्य
ये गलियाँ
एक चाँद जो यंहा
पैदल चला था
3. पूछते हें जनाब खामोश क्यों हो
मालूम नहीं शायद
ये जालिम इश्क का कहर तो
खुद ने ढाया है
4. नशा इतना था हम पर
उस वेवफा का
मर गया कसाना
खुली रह गई आंखें और
नशा छलकता रह गया *सभी शेर मनमोहन कसाना के*
जून 2009 के हिमप्रस्थ के अंक में छपी मेरी कविता
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फोटो पतासी काकी से साभार |
** टाईम पास कर गया वो । **
आज ही तो आया था वो ,
आज ही चला गया
रोते क्यों हो
क्या कुछ ले गया वो
नहीं न लेने की बात तो छोडो
वह तो मुझे गम की दुनिया में
ढकेल गया।
ऐसा नहीं है कुछ भी
अरे जाने भी दो रोते क्यों हो
ये तो सब कुछ उस अदभुत मदारी
का काम है
कुछ पल में ही खुशी की दंनिया को
मटियामेट कर गया वो।
अरे जाने भी दो ...............
लेने के बदले में
गम देकर
टाईम पास कर गया वो
फिर से दूसरी माया नगरी के
के माया जाल में फंसा गया वो
अरे छोडो न ................ अब
ज्यादा नहीं तो कुछ पल के लिए ही सही
टाईम पास कर गया वो ।।
*मनमोहन कसाना*
शुक्रवार, 7 सितंबर 2012
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मनमोहन कसाना - संपादक गुर्जर प्रवक्ता
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